बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
कहने को हमारे पालनहार निष्ठावान, ईमानदार और आम आदमी के दुख और सुख में शामिल होने वाले हैं और इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए पर कोई यह तो बता दो कि जब निष्ठावान, ईमानदार और जनता के खुसख और दुख के चौकीदार हैं तो आम आदमी के हिस्से में ठोकर खाना और आसूं बहाना क्यों लिखा हुआ है। राजनतिक चश्मा लगाकर काम करो अथवा जनहित के नजरिये से काम कराओं लेकिन जनता के लिए तो काम कराओ, सडकों की बदहाली और गंदगी से बजबजाती शहरों की नालियां हमारे पालनहारों की जिम्मेदारी को आइना दिखा रहीं हैं। पता नहीं आम आदमी के नसीब में कब तक ठोकर खाना लिखा हुआ है जो बार – बार परिवर्तन के बावजूद सडकों की बदहाली दूर कराने का दायित्व किसी को याद नहीं आ रहा है।
