12 मई, 2018 का दिन था जनपद बदायूँ की राजनीति को प्रभावित रखने बाले व्यक्तित्व श्री ऋषि पाल सिंह यादव जी का लगभग 6 महीने की बीमारी के बाद देहावसान हो गया।
आज उन्हें गये 7 साल हो गये है। उनका न होना खलता है। 1969 में जब कांग्रेस के गाय बछड़े के निशान से लोग विधायक हो जाया करते थे तब वे गुन्नौर विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के दीपक से उन्हौने जीत दर्ज की थी और यह वह दौर था जब राजनीति में विपक्षी केवल विपक्षी ही नहीं होता था बल्कि विपक्षी जानी दुश्मन होता था और उसकी जान लेना धर्म होता था। जिंदा रहने की शर्त ही यह थी कि दूसरा जिंदा न रहे। इस खूनी राजनीति से त्रस्त होकर चुनाव की राजनीति से दूरी तो बना ली पर राजनीति के अखाड़े के एक पहलवान बने रहे और 1991 में पुनः MLC बदायूँ से चुने गये।
जमीन से जुड़े थे और कभी भी ताकत और पैसा उनपर हावी नहीं हो सका।
MLC होने के बाद भी रोडवेज की बस से जुनावाई उतर कर साईकिल से अपने गांव अहरौला नवाजी जाना और साईकिल से ही बस पकड़ने के लिये आना बदस्तूर जारी रहा। यहां तक की जब जनता दल की यूपी और केंद्र में सरकार थी तब 904, बहुखंडी मंत्री आवास, बटलर पैलेस, लखनऊ से साइकिल से ही विधानसभा और मंत्रियों से मिलने जाने में कभी उन्हें संकोच नहीं हुआ।
MLC होने से पहले उनके पास कंधे पर लटकता एक खादी आश्रम का झोला होता था जिसमें 1 चादर, 1 जोड़ी धोती कुर्ता, रोजमर्रा की जरूरत की चीजें रहती थीं और सर्दी के मौसम में कंधे पर 1 लोई । MLC होने के बाद उनके किसी चाहने बाले ने उन्हें अटैची तो दे दी थी पर उसमें सामान इतना ही रहा।
खाना खाने के जितने शौकीन थे उससे कम बनाने के भी नहीं थे। लखनऊ में उनके आवास पर कोई कुक नहीं था। अपना खाना स्वयं बना लेते थे और जो उनके साथ आते थे उनको भी बना कर खिला लेते थे। जीवन भर शुद्ध शाकाहारी रहे कभी भी बीड़ी, पान, तम्बाकू, शराब का सेवन नहीं किया। उनकी पसंदीदा मिठाई रसमलाई थी जिसे वे बड़े चाव से खाते थे औऱ खिलाते भी थे।
MLC के अपने कार्यकाल के दौरान ही गुन्नौर के लिये
‘बाबू राम सिंह भाय सिंह स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय’
की महान देन है जिसका मूल्यांकन जब होगा तब दद्दा का नाम गुन्नौर विधानसभा के इतिहास में बहुत सम्मान से लिया जायेगा।
दरियादिल इतने कि अपने आदमी की मदद के लिये किसी भी स्तर तक चले जाते। नाम नहीं लिखूंगा नहीं तो लोग नाराज हो जायेंगे पर आज समाज में कई ऐसे चमकते चेहरे है जिनकी नींव खोद कर देखा जाये तो उसमें दद्दा श्री ऋषि पाल सिंह जी का योगदान निकल आयेगा।
मेरे ख्याल से उनके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी 8,फरवरी 2012 को उनके छोटे सुपुत्र व ब्लाक प्रमुख श्री संजय यादव का असमय देहावसान था, जो उस समय राजनीति में काफी सक्रिय थे और लगता था कि दद्दा की राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी होंगे।
इसके बाद दद्दा समझ गए थे कि अब चुनौती विकट है। लेकिन कभी हार न मानने बाले दद्दा ने संघर्ष जारी रखा और इस बार समय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्हौने अपनी राजनीतिक विरासत को सम्हालने के लिये अपने सुपौत्र सुमित को तराशना शुरू किया, दुर्भाग्य से इस बार उनके पास समय कम था। वह अपना काम पूरा न कर सके और 2018 में हम सब को छोड़ कर चले गये।
आज वह नहीं है उनकी यादें है, उनके आदर्श है, उनका संघर्ष हमें याद है। उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता।
उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर उनके परम् प्रिय मित्र स्वर्गीय श्री राजवीर सिंह जी के पुत्र पीयूष रंजन यादव की तरफ से यह श्रद्दांजलि अर्पित है।
