7:57 am Monday , 26 May 2025
BREAKING NEWS

हमारी विरासत: पूज्य जोधा सिंह अटैया को शत-शत नमन

यथोचित प्रणाम।
हमारी विरासत: पूज्य जोधा सिंह अटैया
37 दिनों तक 51 क्रांतिकारियो के साथ जिनके शव इमली के पेड़ पर लटकते रहे ऐसे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी , 20 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने वाले जोधा सिंह अटैया की वलिदान दिवस ( 28 अप्रैल 1858) पर स्वतंत्रता संग्राम मे उनके योगदान का पुण्यस्मरण कर शत-शत नमन।

आज आजाद देश के रूप में हमारी पहचान है। इस पहचान को हासिल करने में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को करीब 200 साल ब्रिटिश हुकूमत से जंग करनी पड़ी थी। इस लंबे संघर्ष के बीच हमारे देश की मिट्टी ने कई नायक पैदा किए। इन्होंने देश के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान कर दिया। इन्ही महान क्रांतिकारियों में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह ‘अटैया’ और उनके 51 साथियों के नाम भी शामिल हैं। 28 अप्रैल 1858 को, जोधा सिंह और उनके 51 साथियों को अंग्रेजों ने फतेहपुर जिले में एक इमली के पेड़ पर फांसी दी थी।

यह स्थान अब “बावन इमली” के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहाँ अंग्रेजों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को फांसी दी थी.
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
जोधा सिंह को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाता है।

बताया जाता है कि अंग्रेजों ने लोगों में खौफ पैदा करने के लिए सभी शवों को पेड़ से उतारने को मना कर दिया था।साथ ही, हिदायत दी थी कि अगर ऐसा करने की किसी ने हिम्मत की तो उसका भी यही हश्र होगा। जिसकी वजह से इन सभी क्रांतिकारियों के शव 37 दिनों तक पेड़ में ही लटके रहे। इस दौरान शवों के केवल कंकाल ही बचे थे।
3-4 जून की रात ठा. महाराज सिंह ने उतारा था शव
बावनी इमली के पास दर्ज ऐतिहासिक दस्तावेज की मानें तो अमर शहीद ठा. जोधा सिंह के साथी ठाकुर महाराज सिंह ने अपने 900 क्रांतिकारी साथियों के साथ 3-4 जून 1858 की रात सभी कंकाल को पेड़ से उतारकर गंगा नदी किनारे स्थित शिवराजपुर घाट पर अंतिम संस्कार किया था।
जोधा सिंह वह फतेहपुर जिले के अटैया रसूलपुर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। युद्ध मे अंग्रेजों को मात देने के लिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध को अपना हथियार बनाया था। इस जंग के दौरान जोधा सिंह और उनके जांबाज़ साथियों ने मिलकर अंग्रेज अफसर कर्नल पावेल की हत्या कर दी थी। वहीं, 7 दिसंबर को रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला भी किया था। इसके दो ही दिन बाद यानी 9 दिसंबर, 1857 को जहानाबाद (तत्कालीन तहसील) के तहसीलदार को बंदी बनाकर सरकारी खजाना लूट लिया था।(साभार)
पुनश्च नमन
सादर

error: Content is protected !!